Sunday, January 6, 2019

11 Real Motivation stories in Hindi for success....

11 Real Life motivation stories in Hindi for success www.Ono9blogpost.com


The Most Inspirational Success Stories – ये 11 Motivational Stories बदल सकती हैं आपकी जिंदगी!

सफलता कुछ असाधारण व्यक्तियों को ही मिल पाती है, यह भावना हम में से कई लोगों के मन में बैठ चुकी है। कई तो अपनी असफलताओं के लिए साधनों के अभाव की बात करते हैं और कई तरह-तरह के बहाने बनाते हैं। लेकिन कभी हमने सोचा है कि जो सफलता के परचम लहराते हैं, उनमें क्या ख़ासियत होती है? वे इसलिए सफल होते हैं क्योंकि बड़े सपने देखते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए रात दिन एक करते हैं। आईये जानें ऐसी कुछ विश्व विख्यात और सम्मानित भारतीय महान विभूतियों के बारे में, जो हमारे लिए प्रेरणा की स्रोत बन सकती हैं…

मिसाइल मैन – डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम

देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति और दुनिया में मिसाइल मैन के नाम के प्रसिद्ध अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी गाँव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) में एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता जैनुलाब्दीन न तो ज़्यादा पढ़े-लिखे थे आैर न ही पैसे वाले। उनके पिता मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे। अब्दुल कलाम संयुक्त परिवार में रहते थे। परिवार की सदस्य संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि वह स्वयं पाँच भाई एवं पाँच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे। अब्दुल कलाम के जीवन पर उनके पिता का बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार अब्दुल कलाम के बहुत काम आए।
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Image: Wikimedia Commons (https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/d/dd/Kalam-Sapta.jpg)
1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation, ISRO) में आये। डॉक्टर अब्दुल कलाम को प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल हुआ। 1980 में उन्होंने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया था। इस प्रकार भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया। इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को परवान चढ़ाने का श्रेय भी उन्हें प्रदान किया जाता है। डॉक्टर कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी (गाइडेड मिसाइल्स) को भी डिजाइन किया। उन्होंने अग्नि एवं पृथ्वी जैसी मिसाइल्स को स्वदेशी तकनीक से बनाया था। डॉक्टर कलाम जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव थे।

सबसे बड़े दान दाता – अजीम प्रेमजी

विप्रो के चेयरमैन अजीम प्रेमजी ने स्टैनफोर्ड विश्‍वविद्यालय की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी। इसका कारण था 1966 में उनके सिर से पिता एम.एच.प्रेमजी का साया उठ जाना। उन्होंने जमकर मेहनत की और विप्रो को नये मुकाम पर पहुँचाया। आज यह एक बहु व्यवसायी (Multi Business) तथा बहु स्थानीय (Multi National) कंपनी बन गयी है। इसका व्यसाय उपभोक्ता उत्पादों, अधोसरंचना यांत्रिकी से विशिष्ट सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों और सेवाओं तक फैला है।
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Image: Observador (http://s3cdn.observador.pt/wp-content/uploads/2015/10/155220145.jpg)
एशिया वीक मैगज़ीन के मुताबिक प्रेमजी का नाम दुनिया के 20 प्रभावशाली लोगों में शामिल है। टाइम मैग्जीन ने भी उन्हें कई बार दुनिया की 100 प्रभावशाली हस्तियों में शामिल किया है। आज विप्रो दुनिया की टॉप सौ सॉफ्टवेयर आईटी कंपनियों में शामिल है। अब प्रेमजी भारत में विश्‍वस्तरीय विश्‍वविद्यालय खोलने में लगे हुए हैं। वह दान देने के मामले में भी पीछे नहीं हैं। आपको ये जानकर गर्व होगा कि उन्होंने गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए आठ हजार करोड़ रुपये से भी अधिक दान दिया है।

पर्यावरण के पुरोधा – संत बलबीर सिंह सींचेवाल

160 किलोमीटर लंबी काली बेई नदी पंजाब में सतलुज की सहायक नदी है। एक समय था जब 32 शहरों की गंदगी और समाज की उपेक्षा की मार सहती यह नदी नाले में तब्‍दील हो चुकी थी। पंजाब के एक छोटे से गाँव सींचेवाल के इस संत ने अपने बलबूते इस नदी को साफ करने का बीड़ा उठाया। संत ने अपने शिष्‍यों के साथ इस काम को अंजाम दिया।
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Image: The Better India (https://www.thebetterindia.com/wp-content/uploads/2016/04/ecobaba2.jpg)
साल 2000 में उनके द्वारा शुरू किये गये प्रयासों का कुछ वर्षों में ही असर दिखा और आज इसकी निर्मल धारा को देखकर सहसा विश्‍वास नहीं होता कि बिना कुछ खर्च किये केवल मानवीय प्रयासों से कैसे एक खत्‍म हो चुकी नदी को पुनर्जीवन दिया जा सकता है। फिलीपींस सरकार को जब उनके काम के बारे में जानकारी मिली, तो उसने मनीला की एक नदी के पुनरुद्धार के लिए उनसे सहयोग माँगा।

महान शिक्षाविद – डी. एस. कोठारी

भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नई दिशा देने के लिए महान शिक्षाविद् डॉ. डी.एस.कोठारी को सदा याद किया जाएगा। इस शिक्षाविद की अध्यक्षता में जुलाई, 1964 में कोठारी आयोग की स्थापना की गई थी। इस आयोग में सरकार को शिक्षा के सभी पक्षों तथा प्रक्रमों के विषय में राष्ट्रीय नमूने की रूपरेखा, साधारण सिद्वान्त तथा नीतियों की रूपरेखा बनाने का सुझाव दिया गया।
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Image: Phila Art (http://www.phila-art.com/wp-content/uploads/2014/01/D-S-Kothari.jpg)
कोठारी आयोग ने प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और उच्च अर्थात विश्वविद्यालयी शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिये। कोठारी आयोग भारत का ऐसा पहला शिक्षा आयोग था, जिसने अपनी रिपार्ट में सामाजिक बदलावों के मद्देनज़र कुछ ठोस सुझाव दिए। आयोग के अनुसार समान स्कूल के नियम पर ही एक ऐसी राष्ट्रीय व्यवस्था तैयार हो सकती है, जहाँ सभी वर्ग के बच्चे एक साथ पढ़ेंगे। कोठारी आयोग की ही देन है कि आज हम शिक्षा में इतने आगे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

दाँव-पेंचों के गुरु – सतपाल पहलवान

ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार और पहलवान योगेश्वर दत्त सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहलवानों को अखाड़े तक पहुँचाने का श्रेय अगर किसी को मिलता है तो वह हैं पद्मश्री पहलवान सतपाल। उनके सुशील कुमार समेत 52 अंतरराष्ट्रीय शिष्य हैं। सतपाल तक़रीबन ३०० शिष्यों को अपने अखाड़े में प्रशिक्षित करते हैं। कुश्ती के प्रति उनके योगदान के लिए 2001 में उनको द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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Image: Outlook India (https://www.outlookindia.com/public/uploads/gallery/20150330/padma-awards4_20150330_600_855.jpg)
जब सतपाल के पिता ने देखा कि बच्चे में अच्छी प्रतिभा है तो उन्होंने छठी कक्षा में ही सतपाल को गुरु हनुमान की शरण में भेज दिया। धीरे-धीरे सतपाल कुश्ती और पढ़ाई में राम गए। 1974 से कुश्ती की शुरुआत करने वाले पहलवान सतपाल ने अपने जीवन में जो कुछ भी सीखा वह आज अपने शिष्यों को दे रहे हैं। उनकी ही प्रेरणा की बदौलत आज हमारे पहलावन दुनियाभर में धूम मचा रहे हैं।

युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत – रतन नवल टाटा

देश की पहली कार जिसके डिजाइन से लेकर निर्माण तक का कार्य भारत की कंपनी ने किया हो, उस टाटा इंडिका प्रोजेक्ट का श्रेय भी रतन टाटा के खाते में ही जाता है। इंडिका के कारण टाटा समूह विश्व मोटर कार बाज़ार के मानचित्र पर उभरा है। 1991 में वह टाटा संस के अध्यक्ष बने और उनके नेतृत्व में टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा पावर, टाटा टी, टाटा केमिकल्स और इंडियन होटल्स ने भी काफ़ी प्रगति की। टाटा ग्रुप की टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) आज भारत की सबसे बडी सूचना तकनीकी कंपनी है। वह फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन के बोर्ड आंफ़ ट्रस्टीज के भी सदस्य हैं।
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Image: Entrackr (http://entrackr.com/wp-content/uploads/2017/10/ratan-tata-image-2.jpg)
कंपनी के नियमानुसार 65 वर्ष की उम्र पार कर लेने के बाद वह पद से तो रिटायर हो गए, पर काम करने का जुनून अब भी उन पर हावी है। उन्होंने अपने 21 साल के मुखिया कार्यकाल में टाटा उद्योग समूह को बहुत आगे बढ़ाया जो अपने आप में एक मिसाल है। उनके अनुसार, मिसाल कायम करने के लिए अपना रास्ता स्वयं बनाना होता है। रतन टाटा ने अपने उत्तराधिकारी साइरस पलोनजी मिस्त्री को भी यह सलाह दी कि वह रतन टाटा बनने की अपेक्षा अपने मौलिक गुणों एवं प्रतिभाओं के अनुसार काम करें, तो वह रतन टाटा से भी आगे जा सकते हैं। यानि साइरस मिस्त्री, साइरस मिस्त्री बनकर ही रतन टाटा की कामयाबियों से भी आगे जा सकते हैं। यदि साइरस मिस्त्री रतन टाटा बनने की कोशिश करेंगे तो वह न रतन टाटा बन पाएंगे और न ही साइरस मिस्त्री रहेंगे। हालांकि ये अलग बात है कि मिस्त्री को किन्हीं कारणों से 2016 में टाटा उद्योग समूह की अध्यक्षता छोड़नी पड़ी। रतन टाटा ने अपने करिअर के शुरुआती दिनों में नेल्को और सेंट्रल इंडिया टेक्सटाइल जैसी घाटे की कंपनियों को संभाला और उन्हें मुनाफे वाली इकाई में बदल कर अपनी विलक्षण प्रतिभा को सबके सामने पेश की। फिर साल दर साल उन्होंने अनेक क्षेत्रों में टाटा का विस्तार किया और सफलता पाई।

आदिवासियों की ध्वजवाहक – महाश्वेता देवी

महाश्वेता देवी एक बांग्ला साहित्यकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिनका जन्म अविभाजित भारत के ढाका में हुआ। उन्हें 1996 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मेहनत व ईमानदारी के बूते उन्होंने अपने व्यक्तित्व को निखारा और एक पत्रकार, लेखक, साहित्यकार और आंदोलनधर्मी के रूप में पहचाई बनाई।
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Image: The Better India (https://www.thebetterindia.com/wp-content/uploads/2016/08/Mahasweta-Devi1.jpg)
इनका पहला उपन्यास, “नाती”, 1957 में अपनी कृतियों में प्रकाशित किया गयाा। 1956 में प्रकािशत हुआ ‘झाँसी की रानी’ उनकी पहली रचना है। स्वयं उन्हीं के शब्दों में, “इसे लिखने के बाद मैं समझ पाई कि मैं एक कथाकार बनूँगी।” इस पुस्तक को महाश्वेता ने कोलकाता में बैठकर नहीं बल्कि सागर, जबलपुर, पूना, इंदौर, ललितपुर के जंगलों, झाँसी ग्वालियर, कालपी में घटित तमाम घटनाओं यानी 1857-58 में इतिहास के मंच पर जो हुआ उस सबके साथ चलते हुए लिखा। वहाँ उनका ध्यान लोढ़ा तथा शबरा आदिवासियों की दीन दशा की ओर अधिक रहा। बिहार के पलामू क्षेत्र के आदिवासी भी उनके सरोकार का विषय बने। इनमें स्त्रियों की दशा और भी दयनीय थी, जिसे महाश्वेता देवी ने सुधारने का संकल्प लिया और व्यवस्था से सीधा हस्तक्षेप शुरू किया।

कलम से ग़रीबी को हराते – अमर्त्य सेन

अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कर विजेता अमर्त्य सेन का जन्म कोलकाता में शांति निकेतन में हुआ था। उनके पिता आशुतोष सेन ढाका विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र पढ़ाते थे। कोलकाता स्थित शांति निकेतन और प्रेसीडेंसी कॉलेज से पढ़ाई पूरा करने के बाद उन्होंने कैम्ब्रिज के ट्रिनीटी कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की डिग्री ली।
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Image: Academics Stand Against Poverty (http://academicsstand.org/wp-content/uploads/4625641734_7d9058e011_o-1.jpg)
वह भारत, ब्रिटेन और अमेरिका में प्रोफ़ेसर रह चुके हैं। उन्हें ग़रीबी और भूख जैसे विषयों पर काम करने के लिए 1998 में अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार दिया गया। वह ये प्रतिष्ठित पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई नागरिक थे। उन्होंने ग़रीबी और भुखमरी जैसे विषयों पर काफ़ी गंभीरता से लिखा है। उन्हें पुरस्कार देने वाली समिति ने उनके बारे में टिप्पणी की थी, “प्रोफ़ेसर सेन ने कल्याणकारी अर्थशास्त्र की बुनियादी समस्याओं के शोध में एक बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया है।”

नाकामयाबी से सीखें – एन आर नारायणमूर्ति

नागवार रामाराव नारायणमूर्ति भारत की प्रसिद्ध सॉफ़्टवेयर कंपनी इन्फोसिस टेक्नोलॉजीज के संस्थापक और जानेमाने उद्योगपति हैं। उनका जन्म मैसूर में हुआ। आई आई टी में पढ़ने के लिए वे मैसूर से बैंगलौर आए, जहाँ 1967 में उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ़ इन्जीनियरिंग की उपाधि और 1969 में आई आई टी कानपुर से मास्टर आफ टेक्नोलाजी (M.Tech) की डिग्री प्राप्त की। एन. आर. नारायणमूर्ति के अनुसार…
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Image: The Huffington Post India (http://www.huffingtonpost.in/2017/06/01/infosys-co-founder-narayana-murthy-has-a-solution-to-avoid-layof_a_22121109/)
आप कोई भी बात कैसे सीखते हैं? अपने खुद के अनुभव से या फिर किसी और से? आप कहां से और किससे सीखते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि आपने क्या सीखा और कैसे सीखा। अगर आप अपनी नाकामयाबी से सीखते हैं, तो यह आसान है। मगर सफलता से शिक्षा लेना आसान नहीं होता, क्योंकि हमारी हर कामयाबी हमारे कई पुराने फैसलों की पुष्टि करती है। अगर आप में कुछ नया सीखने की कला है, और आप जल्दी से नए विचार अपना लेते हैं, तभी आप सफल हो सकते हैं।

मेहनत की प्रतिमूर्ति – इंदिरा नूई

इंदिरा कृष्णमूर्ति नूई का नाम दुनिया की प्रभावशाली महिलाओं में शुमार है। वे येल कारपोरेशन की उत्तराधिकारी सदस्य हैं। साथ ही वे न्यूयॉर्क फेडरल रिजर्व के निदेशक बोर्ड की स्तर बी की निदेशक भी हैं। इसके अलावा वे अंतरराष्ट्रीय बचाव समिति, कैट्लिस्ट के बोर्ड और लिंकन प्रदर्शन कला केंद्र की भी सदस्य हैं। वे एइसेन्होवेर फैलोशिप के न्यासी बोर्ड की सदस्य हैं और वर्तमान में यू एस-भारत व्यापार परिषद में सभाध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएँ दे रही हैं।
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Image: Advertising Age (http://gaia.adage.com/images/bin/image/jumbo/IndraNooyi_PepsiCo2016121432.jpg)
वर्ष 1986-90 के बीच उन्होंने मोटोरोला कंपनी में कॉरपोरेट स्ट्रैटजी के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया और कंपनी के ऑटोमोटिव और इंडस्ट्रियल इलेक्ट्रॉनिक्स के विकास का मार्गदर्शन किया। नूई पेप्सिको की दीर्घकालिक ग्रोथ स्ट्रैटजी की शिल्पकार मानी जाती हैं। नूई 1994 में पेप्सिको में शामिल हुई और 2001 में अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनीं।

बैडमिंटन की प्रेरणा – पुलेला गोपीचंद

साइना नेहवाल, परूपल्ली कश्यप, पीवी सिंधु और गुरूसाई दत्त को बैडमिंटन जगत में बड़ा नाम बनाने वाले पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन के बेहतरीन कोच हैं। वर्ष 2001 में ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैम्पियनशिप जीतने वाले दूसरे भारतीय बने गोपीचंद ने खेल से संन्यास लेने के बाद गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी शुरू की जिसकी बदौलत देश को आज यह नामचीन सितारे मिले हैं।
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Image: The Field (https://d1u4oo4rb13yy8.cloudfront.net/article/65653-aogkyxuzln-1502698798.jpeg)
पुलेला गोपीचंद ने 1991 से देश के लिए खेलना आरम्भ किया जब उनका चुनाव मलेशिया के विरुद्ध खेलने के लिए किया गया। उसके पश्चात उन्होंने तीन बार (1998-2000) ′थामस कप′ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और अनेक बार विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लिया है। उन्होंने अनेक टूर्नामेंट में विजय हासिल कर भारत को गौरवान्वित किया है। उन्होंने 1996 में विजयवाड़ा के सार्क टूर्नामेंट में तथा 1997 में कोलम्बो में स्वर्ण पदक प्राप्त किए

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